रामाधीन गोंड – स्वतंत्रता संग्राम में ‘बदराटोला जंगल सत्याग्रह’ के गुमनाम शहीद

राजनांदगांव रियासत में जब 1939 में जंगल सत्याग्रह आरंभ हुआ तब गोलीकाण्ड का शिकार होने वाले शहीद थे रामाधीन गोंड। वे बदराटोला के निवासी थे।

राजनांदगांव से 40 मील दूर छुरिया विकासखण्ड में एक छोटा सा गांव है बदराटोला। 21 जनवरी 1930 को ग्रामवासियों ने सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। सत्याग्रह की सूचना भेज दी गई। सुबह से ही लोग नारे लगाते हुये अलग-अलग टोलियों में आकर बदराटोला में इकट्ठे हो रहे थे। दोपहर तक डेढ़, दो हजार लोग इस छोटे गांव में एकत्र हो चुके थे। लगभग एक बजे का समय था। कुछ लोग भोजन करके विश्राम कर रहे थे। कुछ लोग अभी भोजन कर रहे थे। महिलायें काम समेटने में लगी थीं। कुछ फूल की माला गूंथ रही थीं।

कब 4 बजे और सत्याग्रह आरंभ हो, लोग इसी प्रतीक्षा में थे। तभी तहसीलदार सुखदेव देवांगन ने 50 सशस्त्र पुलिस सिपाहियों के साथ गांव में प्रवेश किया। सर्वप्रथम उसने सत्याग्रहियों का नेतृत्व करने वाले मुखिया बुधलाल साहू को गिरफ्तार किया। उसकी गिरफ्तारी का विरोध करते हुए रामाधीन आगे आए। उसने तहसीलदार से पूछा ‘जब हम अपने घर में बैठे हैं, सत्याग्रह आरंभ होने में अभी बहुत समय है, तब गिरफ्तारी क्यों की जा रही है?’ लोगों की भीड़ एकत्र हो गई। लोग तहसीलदार की इस कार्यवाही के विरोध में नारे लगाने लगे। तहसीलदार चारों ओर लोगों से घिरा हुआ था। रामाधीन उसके सामने रास्ता रोके खड़ा हुआ था। लोगों को उत्तेजित देखकर तहसीलदार डर से कांपने लगा। उसने पुलिस को गोली चलाकर भीड़ को तितर-बितर करने का आदेश दिया। पुलिस की पहली गोली रामाधीन के सीने पर लगी। वह वहीं पर वन्देमातरम् का नारा लगाते हुए गिर पड़ा। खून की धारा निकल पड़ी मानो वह भारत माता के चरणों को पखार रही हो।

कुछ और लोग भी गोलियों से घायल हुए। तहसीलदार के आदेश पर घुड़सवार पुलिस वालों ने भीड़ पर घोड़े दौड़ा दिये। कई लोग गिर पड़े और कुचल गये। कोहराम मच गया। भीड़ तितर-बितर हो गई। फिर भी कुछ लोग ऐसे थे जो रामाधीन को घेर कर खड़े थे। रामाधीन की माता सुगदी बाई और पिता पतिराम अपने प्रिय पुत्र के निश्चेष्ट शरीर से लिपटकर फफक रहे थे। धीरे-धीरे ग्रामवासी उसी स्थान पर एकत्र होने लगे। उनकी आंखों से आंसू और मुख से ‘रामाधीन जिंदाबाद’ के नारे निकल रहे थे। अर्थी सजाई गई। तिरंगे झण्डे से रामाधीन के पार्थिव शरीर को लपेटा गया अर्थी पर फूलों की वर्षा की गई। रामाधीन की जय घोष के साथ अंत्येष्टि की गई।

रामाधीन गोंड़ जी की शहीदी दिवस मनाते ग्रामवासी

शहादत के समय रामाधीन की आयु केवल 27 वर्ष की थी। शहीद रामाधीन की जिस स्थान पर अंत्येष्टि की गई थी, वहां एक मंदिर का निर्माण किया गया है। वहां प्रतिवर्ष 21 जनवरी को इस वीर शहीद को पुष्पांजलि अर्पित करने लोग एकत्र होते हैं। उस दिन प्रभात फेरी निकालते हैं, देशभक्ति के गीत गाते हैं। इस क्षेत्र के लोक गीतों में रामाधीन आज भी जीवित है।

धन्य-धन्य है सुगदी माता जनमें से अइसन संतान।
आजादी बर तज दिस जे हर, हांसत-हांसत जीव-परान।।
राम अधीन अस बलिदानी मन, छत्तीसगढ़ के राखिन मान।
अमर रहै अइसन शहीद अउ, अमर रहै उन्खर गुन गान।।

जोहार

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